अगर हम आपसे ये सवाल पूछा कि भारत के पहले प्रधानमंत्री का नाम क्या था ?
तो आप यही कहेंगे कि देश के पहले प्रधानमंत्री “पंडित जवाहर लाल नेहरू “थे।
भारत के छोटे से छोटे स्कूल और बड़ी से बड़ी यूनिवर्सिटी के छात्र यही जवाब देंगे क्योंकि बचपन से ही भारत में स्कूल की किताबों में यही इतिहास पढ़ाया गया है। आपकी कोई गलती नहीं है लेकिन ये बात पूरी तरह सच नहीं है।
Bharat First Prime Minister |
सच ये है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू से भी पहले भारत की पहली आजाद सरकार के पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे।
शायद आपको इस बात पर यकीन नहीं होगा लेकिन इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। आजाद भारत में सरकारों ने कुछ खास किस्म के इतिहासकारों को ही मान्यता दी और इन इतिहासकारों ने भारत के इतिहास से जुड़ी बहुत सारी महत्वपूर्ण घटनाओं को आपसे छुपा लिया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत की पहली आजाद सरकार के प्रधानमंत्री विदेश मंत्री और रक्षामंत्री थे लेकिन ये बात कभी भी आपको बताई नहीं गई ना ही आपको पढ़ाई गई।
AZAD HIND SARKAR KYA HAI ?
भारत सरकार ने आज एक बहुत बड़ा फैसला लिया है। इसी महीने 21 अक्टूबर 2021 को भारत की पहली आजाद सरकार की 75वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। इस सरकार को आजाद हिंद सरकार कहा जाता है।
यह सरकार 21 अक्टूबर 1943 को बनी थी और इसका अर्थ यह हुआ कि भारत की मौजूदा सरकार ने सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित आजाद हिंद सरकार को मान्यता दे दी है। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले का दौरा करेंगे और वहां आजाद हिंद फौज संग्रहालय का उद्घाटन करेंगे।
इसके अलावा इसी वर्ष 30 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी अंडमान निकोबार जाएंगे क्योंकि करीब 75 वर्ष पहले 30 दिसंबर 1948 को ही अंडमान निकोबार में पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने तिरंगा फहराया था।
यह तिरंगा आजाद हिंद फौज का था और यह भारतीय जमीन पर आजादी की पहली निशानी थी। मौजूदा सरकार ऐसा क्यों कर रही है इसके पीछे की राजनीति क्या है यह सब कुछ तो आपने दिन भर न्यूज चैनलों पर होने वाली डिबेट्स में सुन लिया होगा लेकिन कोई यह बात नहीं कर रहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान को हमारे देश में कमतर क्यों माना गया।
आजाद हिन्द फौज और आजाद हिंद सरकार जैसी उपलब्धियों को किनारे क्यों लगा दिया गया यह सवाल आज गहरे विश्लेषण की मांग कर रहे हैं।
अगर किसी परीक्षा में सवाल पूछ लिया जाए कि भारत की पहली आजाद सरकार के प्रधानमंत्री का नाम क्या था और आप उसके जवाब में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम लिख दें तो आपके सारे नंबर कट जाएंगे क्योंकि ये जवाब गलत माना जाएगा और यही इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे लेकिन भारत की पहली आजाद सरकार के प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे ये फर्क आपको हमेशा याद रखना चाहिए और सुभाष चंद्र बोस को हमेशा उनके हिस्से का सम्मान देना चाहिए ये मिलना ही चाहिए।
AZAD HIND SARKAR KI STHAPNA KAB HUI ?
भारत की पहली आजाद सरकार की स्थापना और उसकी घोषणा सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्टूबर 1948 को की थी। इस घोषणा के तुरंत बाद 23 अक्टूबर 1948 को आजाद हिंद सरकार दूसरे विश्व युद्ध के मैदान में उतर गई थी।
आजाद हिंद सरकार के प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटेन और अमेरिका के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया था। उस वक्त नौ देशों की सरकारों ने सुभाष चंद्र बोस की सरकार को अपनी मान्यता दी थी। जापान ने 30 अक्टूबर 1948 को आजाद हिंद सरकार को मान्यता दी।
AZAD HINDI SARKAR KAISE DUNIYA MAI AAYA
उसके बाद जर्मनी फिलीपीन्स थाईलैंड मंचूरिया और क्रोएशिया ने भी आजाद हिंद सरकार को अपनी मान्यता दे दी। आजाद हिंद सरकार ने जापान सरकार के साथ मिलकर म्यांमार के रास्ते पूर्वोत्तर भारत में प्रवेश करने की योजना बनाई थी। सुभाष चंद्र बोस ने बर्मा की राजधानी रंगून को अपना हेडक्वार्टर बनाया और तब वहां जापान का कब्जा हुआ करता था। 18 मार्च 19 चवालीस को सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज ने भारत की धरती पर कदम रखा था और उस जगह को अब नागालैंड की राजधानी कोहिमा के नाम से जाना जाता है।
AZAD HIND FAUJ SUBHASCHANDRA BOSE |
आजाद हिंद फौज के शौर्य में कोई कमी नहीं थी लेकिन दो प्रमुख वजहों से सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज कोहिमा से आगे नहीं बढ़ पाई। पहली वजह ये थी कि ये युद्ध जंगलों में लड़ा जा रहा था और तब जुलाई का महीना था और भारी बारिश की वजह से सेना का आगे बढ़ना मुश्किल था और दूसरा बड़ा बड़ी वजह ये थी कि आजाद हिंद फौज के पास एयर सपोर्ट नहीं था।
ब्रिटिश सेना के पास लड़ाकू विमान थे जिनके सामने आजाद हिंद फौज के सैनिक मजबूर हो गए थे।
अगर 1645 में जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में अमेरिका ने परमाणु बम से हमला कर दिया जिसके बाद जापान ने सरेंडर कर दिया और ये सुभाष चंद्र बोस के लिए एक बहुत बड़ा झटका था। अमेरिका और ब्रिटेन ने दूसरा विश्व युद्ध जीत लिया लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने हिम्मत तब भी नहीं हारी।
नेताजी आजादी के नए मिशन पर निकले थे लेकिन ये कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइवान में हुए एक विमान हादसे में उनकी मृत्यु हो गई हालांकि उनकी मृत्यु आज भी एक रहस्य है।
भारत की पहली आजाद सरकार के पहले प्रधानमंत्री नेताजी सुभाष चंद्र बोस इस घटना के बाद इतिहास के पन्नों में कहीं खो गए। यहां आजाद हिंद सरकार के बारे में भी आपको कुछ बातें जरूर जाननी चाहिए।
TIRANGA JHANDA KAISE BNA RASTRI DHWAJ
सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद सरकार के पहले प्रधानमंत्री रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री थे। लेफ्टिनेंट कर्नल केसी चड्ढा जी। आजाद हिन्द सरकार के वित्तमंत्री थे। एस ए आई आर। आजाद हिंद सरकार के प्रचार मंत्री थे रास बिहारी बोस को आजाद हिंद सरकार का सलाहकार बनाया गया था और इस सरकार की स्थापना करते वक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने शपथ ली थी कि ईश्वर के नाम पर ये पवित्र शपथ लेता हो कि भारत और उसके अड़तीस करोड़ लोगों को आजाद करवाऊंगा या उनकी पार्टी आजाद हिंद सरकार ने ये तय किया था कि तिरंगा झंडा भारत का राष्ट्रीय ध्वज होगा।
विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार रविन्द्र रबींद्रनाथ टैगोर का जन गण मन भारत का राष्ट्रगान हुआ और लोग एक दूसरे से अभिवादन के लिए जय हिंद का प्रयोग करेंगे।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की कथित मृत्यु के बाद भी ब्रिटेन और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां पूरी दुनिया में उनकी तलाश करती रहीं। ये वो दौर था जब अहिंसा के पुजारियों पर लाठियां बरसाना अंग्रेजों का बहुत प्रिय शौक था। लेकिन सुभाषचंद्र बोस ने खून का बदला खून से लेने की नीति पर काम किया।
यह सुभाषचंद्र बोस द्वारा छेड़ा गया रक्त रंजित संग्राम था जिसमें अंग्रेजों की सेना के पैंतालीस हजार से ज्यादा सैनिकों की मौत हुई थी। बर्मा की जंग में अंग्रेजों की सेना सुभाष चंद्र बोस के चक्रव्यूह में इस तरह फंसी कि ब्रिटिश सेना के दस हजार से ज्यादा सैनिक बीमारियों का शिकार हो गए थे।
इस लड़ाई में अमेरिका की सेना के भी तीन हजार से ज्यादा सैनिकों की मौत हुई थी और यही वजह है कि ब्रिटेन और अमेरिका की खुफिया एजेंसियां मिलकर सुभाष चंद्र बोस को किसी भी तरह से ढूंढकर सजा देना चाहती थीं।
अंग्रेजों ने उन पर हजारों अंग्रेज सैनिकों की हत्या के आरोप लगाए लेकिन ये आरोप सुभाष चंद्र बोस के लिए किसी मैडल से कम नहीं थे। भारत में लाखों लोगों की हत्या करने वाले अंग्रेजों को सुभाष चंद्र बोस ने ही बता दिया था कि अहिंसा और शांति भारत की कमजोरी नहीं।
भारत को हथियारों से जवाब देना भी उतना ही अच्छी तरीके से आता है।पहली बार तिरंगा एक आजाद सरकार के तौर पर नेताजी सुभाष ने 30 दिसंबर 1943 को इसी जगह पर फहराया था।